एग्रीकल्चर सेक्टर में क्राइसिस के संकेत, डबल डिजिट से गिरकर 3.8% पर रेट | Share Market Tips

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एग्रीकल्चर सेक्टर में क्राइसिस के संकेत, डबल डिजिट से गिरकर 3.8% पर रेट


एग्रीकल्चर सेक्टर में एक और क्राइसिस के संकेत मिलने लगे हैं। आरबीआई की ताजा रिपोर्ट के अनुसार मई 2018 में एग्रीकल्चर सेक्टर में 3.8 फीसदी की ग्रोथ दर्ज की गई है। जो कि पिछले चार का सबसे निचला स्तर है। पिछले 4 साल में  फाइनेंशियल ईयर के आधार पर एग्रीकल्चर एंड एलाइड सेक्टर की क्रेडिट ग्रोथ डबल डिजिट से गिरकर 3.8 फीसदी के स्तर पर गई है। मार्च 2014-15 में जहां क्रेडिट ग्रोथ रेट 15% थी।

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चुनावी साल में सरकार के लिए बड़ा चैलेंंज
सरकार अब चुनावी साल में प्रवेश कर चुकी है। ऐसे में उसके लिए एग्रीकल्चर एंड एलाइड सेक्टर के लिए बैंकों की क्रेडिट ग्रोथ में बड़े पैमाने पर गिरावट से उठने वाले सवालों का सामना करना आसान नहीं होगा। रिजर्व बैंक के डाटा ने विपक्षी दलों को भी मोदी सरकार के खिलाफ बड़ा हथियार मुहैया करा दिया है। विपक्षी दल किसानों की खराब हालत को लेकर मोदी सरकार पर पहले से हमले करते रहे हैं। 

पिछले चार साल में क्रेडिट ग्रोथ 
अवधि
 क्रेडिट ग्रोथ रेट 
मार्च 2014-15 
15 %
मार्च 2015-16
15.3%
मार्च 2016-17
12.4%
मार्च 2017-18
3.8%

निवेश के लिए कर्ज लेने से बच रह है किसान 
एग्री एक्सपर्ट विजय सरदाना ने moneybhaskar.com को बताया कि एग्रीकल्चर और एलाइड सेक्टर के लिए बैंकों की क्रेडिट ग्रोथ में बड़े पैमाने पर प्रमुख तौर पर तीन कारण है। पहला किसान को उसकी उपज की सही कीमत नहीं मिल रही है। इसकी वजह से किसान निराश है। वह अब बैंकों से लोन लेकर खेती में निवेश करने से डर रहा है। उसे भरोसा नहीं है कि लोन लेकर जो पैसा वह खेती में लगाएगा उसका सही रिटर्न उसे मिलेगा। 

डेयरी और पोल्ट्री सेक्टर की हालत खराब 
विजय सरदाना के मुताबिक दूसरा बड़ा कारण यह है कि डेयरी और पोल्ट्री सेक्टर की हालत भी खराब है। डेयरी और पोल्ट्री में भी कीमतें गिरी हैं और इसमें लगे किसानों का मुनाफा कम हुआ है। इससे इस सेक्टर में भी नया निवेश कम हो रहा है। इसकी वजह से भी इस सेक्टर में बैंक लोन की मांग कम हुई है। 

कर्ज माफी की घोषणा से भी बैंक हुए सतर्क 
विजय सरदाना  का कहना है कि तीसरा बड़ा कारण राज्यों में किसानों का कर्ज माफ होने की घोषणा होने के बाद बैंक अब किसानों को कर्ज देने को लकर थोड़ा अलर्ट हो गए हैं। राजनीतिक दलों द्वारा हर राज् में किसानों की कर्ज माफी का वादा करने से फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन में खराब मैसेज गया है। आम तौर पर बैंक, माइक्रोफाइनेंस कंपनियां और सहकारी बैंक किसानों को लोन देते हैं। लेकिन कर्ज माफी की घोषणा होने से बैंकों की बैलेंस शीट पर असर पड़ता है। सरकार उनको कब पैसा देती है और कैसे देती है। ऐसी तमाम चीजें होती है जो बैंक के हिसाब से नहीं होती हैं। ऐसे में बैंक भी अब किसानों को कर्ज देने को लेकर थोड़ा अलर्ट हो गए हैं। 

किसानों के क्रेडिट बिहैवियर पर शक 
एक पीएसयू बैंक के अधिकारी ने बताया कि राज्यों में कर्ज माफी की घोषणा होने से बैंक अब एग्रीकल्चर सेक्टर को कर्ज देने में थोड़ा हिचक रहे हैं। उनको लग रहा है कि किसान कर्ज लेकर उसको जमा नहीं कराएगा क्योंकि उसको लग रहा है कि उसका कर्ज फिर से माफ हो जाएगा। ऐसे में किसानों का क्रेडिट बिहैवियर भी प्रभावित हो रहा है। 

यूपी, महाराष्ट्र और पंजाब कर चुके हैं कर्ज माफी की घोषणा 
मार्च 2017 में उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने यूपी में किसानों का 1 लाख रुपए तक का कर्ज माफ करने की घोषणा की थी। यूपी सरकार ने बताया था कि इस पर कुल लगभग 36,000 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। इसके बाद महाराष्ट्र में भी किसानों का कर्ज माफी की मांग की और महाराष्ट्र की सरकार को भी किसानों की मांग के आगे झुकना पड़ा। इसके बाद जून, 2017 में महाराष्ट्र ने भी 34,022 करोड़ रुपए की कर्ज माफी स्कीम की घोषणा की। इसके बाद पंजाब सरकार ने भी अपने राज् में किसानों का कर्ज माफ करने की घोषणा की है। हालांकि अभी सरकार ने यह नहीं बताया है कि इस पर कितना खर्च आएगा। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी राजनीतिक दलों ने किसानों का कर्ज माफ करने का वादा किया था। कर्नाटक विधानसभा में बहुमत साबित करने से पहले ही इस्तीफा देने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्ता ने किसानों का 1 लाख रुपए तक का कर्ज माफ करने की घोषणा की थी। ऐसे में कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री कुमारस्वामी पर भी किसानों का कर्ज माफ करने का दबाव होगा। 

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