वॉलमार्ट-फ्लिपकार्ट डील के खिलाफ Traders, कहा- 3 करोड़ रिटेलर्स और 6 लाख नौकरियों पर छाएगा संकट

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वॉलमार्ट-फ्लिपकार्ट डील के खिलाफ Traders, कहा- 3 करोड़ रिटेलर्स और 6 लाख नौकरियों पर छाएगा संकट


अमेरिकी कंपनी वॉलमार्ट ने भारतीय -कॉमर्स प्लेटफॉर्म फ्लिपकार्ट में 77 फीसदी हिस्सेदारी खरीद ली है। यह सौदा 1.07 लाख करोड़ रुपए (लगभग 16 अरब डॉलर) का रहा। इसके साथ ही भारतीय ट्रेडर्स द्वारा इस डील का किया जा रहा विरोध और तेज हो गया। ट्रेडर्स का कहना है कि वॉलमार्ट ऑनलाइन मार्केट के जरिए देश के ऑफलाइन बाजार में उतरेगी, जिससे छोटे रिटेलर्स का धंधा चौपट हो जाएगा। इस डील से देश के 3 करोड़ रिटेलर्स को सीधे तौर पर नुकसान होगा और 5-6 लाख नौकरियों पर खतरा छा जाएगा। 

बता दें कि ट्रेडर्स ने इस डील को रोकने के लिए सरकार से भी अपील की थी। उन्होंने कॉमर्स मिनस्ट्री को ज्ञापन दे मामले में दखल देने को भी कहा था। 

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 देश बन जाएगा डंपिंग ग्रांउड 
कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) के सेक्रेटरी जनरल प्रवीण खंडेलवाल का कहना है कि वॉलमार्ट-फ्लिपकार्ट डील के होने से वॉलमार्ट जैसी कंपनियां दुनिया में से कहीं से भी सामान लाएंगी और देश को डंपिंग ग्राउंड बना देंगी। भारतीय रिटेलर्स के लिए लेवल प्लेइंग फील् बराबर का नहीं रहेगा और वे कॉम्पिटीशन में पिछड़ जाएंगे। देश में इस वक् लगभग 7 करोड़ रिटेलर्स हैं, जिनमें से लगभग 3 करोड़ रिटेलर्स को इस डील से सीधे तौर पर नुकसान होने वाला है। 

सरकार ने किया निराश तो जाएंगे कोर्ट 
खंडेलवाल के मुताबिक, हमें विदेशी कपंनियों द्वारा भारत में इन्वेस्टमेंट पर एतराज नहीं है। विदेशी कपंनियां एफडीआई के जरिए देश में इन्वेस् करें लेकिन -कॉमर्स का सहारा लेना गलत है। खंडेलवाल के मुताबिक, अगर सरकार इस मामले में कोई कदम नहीं उठाती है तो फिर ट्रेडर्स आंदोलन करेंगे और कोर्ट भी जाएंगे। 

-कॉमर्स के लिए FDI कानूनों को नहीं हो रहा पालन 
CAIT के मुताबिक, FDI की 2016 की पॉलिसी के मुताबिक, -कॉमर्स प्लेटफॉर्म केवल बायर-सेलर प्लेटफॉर्म रहेंगे। वे खुद के प्रोडक् नहीं बेच सकते हैं। लेकिन ये प्लेटफॉर्म नियमों के खिलाफ जाकर अपनी शेल कंपनियों के जरिए खुद के प्रोडक् भी अपने प्लेटफॉर्म पर बेचने लगे हैं। यहां तक कि माल रखने के लिए उनके वेयरहाउस भी हैं। दूसरा वे कीमतों के मामले में भी ग्राहकों को लुभाते हैं, जो पॉलिसी का उल्लंघन है। इसकी वजह है कि देश में -कॉमर्स सेगमेंट के लिए कोई ठोस नियम-कानून नहीं हैं। फ्लिपकार्ट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड इनकम टैक् डिपार्टमेंट के समक्ष यह स्वीकार चुकी है कि वह होलसेल में काफी ज्यादा डिस्काउंट की पेशकश कर रही है और यह उसकी मार्केटिंग स्ट्रैटेजी का हिस्सा है। लेकिन सरकार इस पहलू पर गौर नहीं कर पा रही है। 

-कॉमर्स के लिए बने रेगुलेटरी अथॉरिटी 
CAIT का कहना है कि सरकार को चाहिए कि वह इस नियम को अनिवार्य करे कि वॉलमार्ट-फ्लिपकार्ट जैसी डील तभी हो सकेगी, जब -प्लेटफॉर्म के 75 फीसदी सेलर्स अपनी मंजूरी दे दें। ऐसा इसलिए क्योंकि सबसे ज्यादा नुकसान उन्हीं को होने की गुंजाइश रहती है।
CAIT ने सरकार से -कॉमर्स के लिए जल् से जल् पॉलिसी और रेगुलेटरी अथॉरिटी का गठन करने की भी अपील की है। उनका कहना है कि जब तक यह अथॉरिटी बन जाए इस तरह की किसी भी डील को मंजूरी दी जाए।

पहले भी वॉलमार्ट कर चुकी है भारतीय बाजार में उतरने की कोशिश
वॉलमार्ट 2007 में भारती एंटरप्राइजेज के साथ एक साझा कंपनी के जरिए भारत में ऑफलाइन होलसेल बिजनेस में आने वाली थी। उस वक् देश में यूपीए सरकार कार्यकाल में थी और उसने 2012 में मल्टी और सिंगल ब्रांड रिटेल सेक्टर में 100 फीसदी FDI को अनुमति देने का फैसला किया था। लेकिन बीजेपी ने इसका विरोध किया था। बड़े पैमाने पर विरोध के चलते सरकार को अपना फैसला बदलना पड़ा और सिंगल ब्रांड रिटेल सेक्टर में 100 फीसदी FDI लागू नहीं हो सका। हालांकि मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 फीसदी FDI लागू हो गया।  लिहाजा वॉलमार्ट भारत में एंट्री नहीं कर पाई। बाद में कंपनी ने भारती के साथ 2013 में अपनी साझा कंपनी को भी खत् कर दिया।


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